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प्रभो! मिटा दो मेरा सारा, सभी तरह का मद-अभिमान / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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प्रभो! मिटा दो मेरा सारा, सभी तरह का मद-अभिमान।
झुक जाये सिर प्राणिमात्रके चरणोंमें, तुमको पहचान॥
आचण्डाल, श्रृंगाल, श्वान भी हों मेरे आदरके पात्र।
सबमें सदा देख पाऊं मैं मृदु मुसकाते तुमको मात्र॥
सबका सुख-समान परम हित ही हो, मेरी केवल चाह।
भूलूँ अपनेको सब विधि मैं, रहे न तनकी सुधि-परवाह॥
पूजूँ सदा सभीमें तुमको यथायोग्य कर सेवा-मान।
बढ़ती रहे वृत्ति सेवाकी, बढ़ती रहे शक्ति-निर्मान॥
परका दुःख बने मेरा दुख, सुखपर हो परका अधिकार।
बन जाये निज हित पर-हित ही, सुखकी हो अनुभूति अपार॥
आर्त प्राणियोंको दे पाऊं सदा सान्त्वना-सुखका दान।
उनके दुःख-नाशमें कर पाऊं मैं समुद आत्म-बलिदान॥