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प्रमोद जोशी की याद / सुरेश सलिल
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तुझसे दिलदार भला अब कहाँ ?...
तू धराऊ था, गुज़िश्ता था
पर हक़ीक़त इन्सानी चोले में तू फरिश्ता था
फरिश्तों के ही सीने में होता है एक फेफड़ा
यक्साँ ही लहरा उठता है उससे
साँसों का
यक्साँ ज़मीन पर लहराती है उनकी दोस्तियाँ
तू दोस्तों का दोस्त बिना किसी दावे के
बिना किसी गुमान के
और हम !... जो दावे करते हैं
आनबान के --
दो फेफड़े वाले हैं
पता नहीं कब सुर्ख़ हैं
पता नहीं कब काले हैं
(तब भी हम दिलवाले हैं !!)
प्रमोद जोशी : कवि, टेली-फ़िल्मों के पटकथाकार, गम्भीर सिनेमा के अनौपचारिक अध्येता और ऋत्विक घटक के सिनेमा के लिए समर्पित, 1970-80 के दशक में वामपंथी सांस्कृतिक कार्यकर्ता