भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रयत्न / नरेन्द्र मोदी / अंजना संधीर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सर झुकाने की बारी आये
ऐसा मैं कभी नहीं करूँगा
पर्वत की तरह अचल रहूँ
व नदी के बहाव सा निर्मल

शृंगारित शब्द नहीं मेरे
नाभि से प्रकटी वाणी हूँ

मेरे एक एक कर्म के पीछे
ईश्वर का हो आशीर्वाद