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प्रयाण-गीत / विमल राजस्थानी

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और कितने दिन ?
ये स्वजन, यह गेह सुन्दर, मेज-कुर्सी, पैड, कलमें, पिन
और कितने दिन ?
अस्ती होती सुर्य-किरणों ने न देखा भोर
भोर ने देखा न अरूणिम साँझ का छवि-छोर
दिन तरस कर रह गया-देखे सुहानी रात
रात ने देखे न आतप में झुलसते गात
एक मैं ही तो कि जिसने सभी को है सहा
एक मैं ही लहर के संग सिन्धु तक हूँ बहा
सह पथ पाया न जीवन में,
सदा राहें मिलीं-दुर्जेय, कुलिश-कठिन
और कितने दिन ?
आँसुओं पर शोध करने का जटिल व्रत पाल
कष्ट की अमराइयों में खाट अपनी डाल
चेष्टा असफल बहुत की, पर छिटक कर छाँह
दूर ही होती रही, थामी न मेरी बाँह
झुलस कर तन झुर्रियों का बन गया आधार
शीश धुन, बन रक्त-स्नाता वृत्तियाँ सुकुमार
हो गयी निःशेष जैसे
आजकल बाजार से गायब हुई ‘मसलिन’
और कितने दिन ?
और कितने दिन ?
और कितने दिन ?