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प्रयाण / अंतर्यात्रा / परंतप मिश्र
Kavita Kosh से
चुन-चुन कर सुंदर शब्दों को
मैं अब लिखता गीत प्रणय के
सावन की कुछ प्यासी फुहार
अलसाए पल प्रिय, वसंत के
नव-प्रभात के प्रथम प्रहर की किरणों सी
स्मृतियाँ जागृत उस महा महा मिलन की
मधुमास की प्यास में प्रकृति बनी दुल्हन सी
कली सुगन्धित झूले झूला डाली पर यौवन की
कल-कल करता लहरों का मादक नर्तन
प्रेम विवश तट पर चुम्बन लेते प्रस्तर का
बिना राग- द्वेष होते आवाहन और समर्पण
चरम शांति की होंठों से झरे बूँद निर्झर की
इस जीवन में सपने जैसे विस्तृत नील गगन के
मानव बटोरता अनुभव सारा बीते हुए लगन के
मन से करता संघर्ष निरंतर लगते दाव दमन के
मिलन और विछोह लक्षण, शाश्वत आवागमन के