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प्रयास / केशव मोहन पाण्डेय
Kavita Kosh से
जिनगी जहर ना हऽ
हहरावेले
घहरावेले
तबो
कहर ना हऽ।
जिनगी
राग हऽ
रंग हऽ
एह के
अजब-गजब ढंग हऽ
ई कई बेर बुझाले
कि बिना बिआहे के बाजा हऽ
छन में फकीर हऽ ई
छन में
चक्रवर्ती राजा हऽ।
ई तऽ सभे जानेला
कि पानी बही ना
तऽ गड़हा में ठहर के
मर जाई
बबुआ
सुतला से कुछ ना मिली
सुतले रहब
आ भइसिया
सगरो खेत चर जाई
उठऽ
प्रयास करऽ
जाँगर भर जोर लगाव
जे आगे बा
ओहसे होड़ लगाव
कवनो अनुग्रह-अनुदान के
मुँह मत देखऽ
करम के जोत जराव,
करम होई
त फल मिलबे करी
सिद्ध कऽ के देखाव,
निश्चित बा
तहरा मन के फूल
खिलबे करी।