प्रलय-यामिनी / प्रतिभा सक्सेना
बढी आ रही,इक प्रलय की लहर
ने कहा जिन्दगी से अरे यों न डर
आज कितनी मधुर है प्रलय यामिनी!
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आज लहरें बढेंगी बुलाने तुम्हें,
आज स्वागत करेगा तिमिर यह गहन!
फेन बुद्बुबुद् बिछाये यहाँ पंथ में
उस गगन पंथ से साथ ले धोर घन,
वह महाकाल का रथ बढा आ रहा,
बज रहे ढोल बाजे गहन घोर स्वर,
मौर मे झलमलाती है सौदामिनी!
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आँसुओं से भरे ये तुम्हारे नयन,
यों न व्याकुल बनो मैं अभी साथ हूँ,
यह न घर था तुम्हारा सदा के लिये,
आज तुम पर जगत के प्रहर वार दूँ!
द्वार का पाहुना है अनोखा बडा,
सिर्फ़ स्वागत सहित लौटने का नहीं,
साथ मे है बराती प्रलय-वाहिनी!
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आज जाना पडेगा दुल्हन सी विवश,
इस धरा से अभी नेह से भेंट लो!
यह सदा की सहेली घडी ढल रही,
छुट रहा साथ इससे बिदा माँग लो १
आ रहा आज कोई बुलाने तुम्हें उस
अपरिचय भरी शून्य की राह में,
लो सुनो, यह बिदा की करुण रागिनी!