भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रलय-संगीत / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


आज तो हुंकार कर स्वर,
ज़ोर से ललकार कर स्वर,
जागरण-वीणा बजा, उन्मुक्त भैरव-राग से, मैं
गीत गाने को चला हूँ !

शीघ्र तोड़े बंधनों को,
तीव्र करदे धड़कनों को,
वेग से विप्लव मचाकर, सृष्टि करदे और नूतन ;
प्रेरणा दे, वह कला हूँ !

प्यार का संसार लाने,
शांति का उपहार लाने,
है युगों से व्यस्त जीवन, ध्येय को कर पूर्ण अर्पण
साधना में ही पला हूँ !

जो विघातक नीति जग की,
स्वाँग की जो प्रीति जग की,
आज इनको नष्ट करने का किया है प्रण हृदय से,
ज्वाल रक्षा हित जला हूँ !
1945