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प्रलय बात / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

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 प्रलय बात बात (कविता का अंश)
रूग्ण गात, झरे पात
वही प्रलय प्रबल बात
पृथ्वी में गया फैल
तीक्ष्ण शिशिर और नाश।
तन में जिसके न प्राण
बांह वह बार बार उठा
मांग रहा था त्राण
(प्रलय बात कविता से )