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प्रवाह / विजेन्द्र अनिल

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मेरी आवाज़ को
बेरोकटोक
सागर की फेनिल लहरों तक पहुँचने दो
इसकी राह में कोई बाँध मत बनाओ
कोई दीवार मत खड़ी करो

दीवार या बाँध बनाने
अथवा टीला उगाने
की हर कोशिश
बालू की भीत
बन जाएगी
आवाज़ को
सागर की अतल गहराइयों में
पहुँचना ही है
चाहे वह ज़मीन के ऊपर चले
या सुरंग के भीतर
यह हवा में तैरती हुई
विद्युत वेग से
आगे बढ़े
इसे सागर तक पहुँचना ही है
इसे उद्दाम लहरों से
एकाकार होना ही है

मेरी आवाज़ को
मुल्क की धड़कनों में
तब्दील होने दो
इसे मजरिम बनाने की हर कोशिश
मुल्क के चेहरे पर उगा क़ातिलाना दाग है
इस दाग से मुल्क को
बचाओ
हवा के ख़ुशबूदार झोंके को मुजरिम होने से
बचाओ
बचाओ पंछियों की चहक
और फूलों कि मुस्कान

मेरी आवाज़
गंगा की गतिमान धारा है
इसके प्रवाह को मत रोको
मत बनाओ कोई बाँध वरना गंगा और विह्वल
हो जाएगी
और इसका पानी
डुबो देगा
चहचहाते नगरों की
मुण्डेरों को