प्रवृत्ति-निवृत्तिः / बुद्ध-बोध / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

टीपनि टिपि, विचारि ज्योतिषफल कहलनि गणक विचारि
शिशु ई धर्मचक्र संचालक होयता जगत प्रचारि
राजयोगसँ त्यागयोग अछि हिनक बढ़ल से बूझि
रोग जरा ओ मरणदृश्य नहि हिनका जाइनि सूझि।।6।।
सावधान रहबे राजन्! ई छथि करुणा - आगार
संसारी बनि रहथु तेना राखब कय यत्न हजार
सुनि शुद्धोदन पुत्रप्रेम वश किछु चिन्तित उद्धिग्न
भय सतर्क लालन - पालनमे लागल रहथि सयत्न।।7।।
राजोचित परिवेश सखा सुहृदक सङ कौतक-केलि
पुनि शिक्षा - दीक्षा हित कयलनि राजभवन बिच मेलि
काव्य - कलासँ अधिक हिनक रुचि - शुचि दर्शन दिस जाय
भोग - राजसँ योग विरागक कथा तथा रुचिदाय।।8।।
सावधान शुद्धोदन यत्नेँ राजस जीवन योग्य
सुलभ करथि, जहिसँ मन हिनकर करय विषयरस भोग्य
तेँ सजाय उपवन - गृह सुख - सामग्री ढेर लगाय
दिव्य सुन्दरी यशोधरा सङ देल विवाह रचाय।।9।।
विधि विधान छल आन प्रकारहि तेँ तेहन संयोग
मन उद्विग्न कुमार गौतमक बहरयबाक सुयोग
बन्धमे पड़ि गज औनाइछ जंगल कहुना जाइ
विहग बंद पिजड़ामे छटपट करइछ नभ बहराइ।।10।।
घर - आङनमे घेरल - बेढ़ल गौतम छला उदस्त
विस्तृत जगतक हालचाल बुझबाक लालसा न्यस्त
भेल व्यवस्था तकरहु नगरक हाट - बाट सजि गेल
सिंचित पथ तोरण पताक ध्वज भ्रमण रमणहिक लेल।।11।।

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