भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रशिक्षण / नरेश अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह सारे काम मन लगाकर करता था
इसलिए हर दिन पिछले दिन की अपेक्षा
अधिक काम सीख चुका होता था
उसे महसूस होता था
उसके पंख धीरे-धीरे खुल रहे हैं
अब फासला बहुत कम है सफलता को छूने में
फिर भी अभी कई महीने दूर था वह
मालिक लगातार उस पर नजर गड़ाये हुए था
वह उसकी रुचि से खुश था
उसके मन में योजना बन चुकी थी
इस लडक़े को नयी-नयी जिम्मेवारियां दी जाएं
इस पर काम का बोझ थोड़ा-थोड़ा बढ़ाया जाए
इसलिए नसों को अंतिम चरण तक खींचा जा रहा था
ताकि वह जो भी बने उसमें स्थिरता हो
इस तरह से वह धीरे-धीरे पूरा बदल चुका था
अब उसे पुराने कामों से हटा दिया गया
सामने उसके नये कामों की कुर्सी थी
और दायित्व बड़े-बड़े कामों को संभालने का मेज पर
जिन्हें आस्था और विश्वास के साथ उसे पूरा करना था।