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प्रशिक्षण / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
वह सारे काम मन लगाकर करता था
इसलिए हर दिन पिछले दिन की अपेक्षा
अधिक काम सीख चुका होता था
उसे महसूस होता था
उसके पंख धीरे-धीरे खुल रहे हैं
अब फासला बहुत कम है सफलता को छूने में
फिर भी अभी कई महीने दूर था वह
मालिक लगातार उस पर नजर गड़ाये हुए था
वह उसकी रुचि से खुश था
उसके मन में योजना बन चुकी थी
इस लडक़े को नयी-नयी जिम्मेवारियां दी जाएं
इस पर काम का बोझ थोड़ा-थोड़ा बढ़ाया जाए
इसलिए नसों को अंतिम चरण तक खींचा जा रहा था
ताकि वह जो भी बने उसमें स्थिरता हो
इस तरह से वह धीरे-धीरे पूरा बदल चुका था
अब उसे पुराने कामों से हटा दिया गया
सामने उसके नये कामों की कुर्सी थी
और दायित्व बड़े-बड़े कामों को संभालने का मेज पर
जिन्हें आस्था और विश्वास के साथ उसे पूरा करना था।