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प्रश्न जब भी उछाले गए / जहीर कुरैशी
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प्रश्न जब भी उछाले गए
दोष हम पर ही डाले गए
आलकल साँप बिल की जगह
आस्तीनों में पाले गए
सूर्य के डूबते साथ ही
बस्तियों से उजाले गए
एक शालीन- से व्यंग्य को
आपतो अन्यथा ले गए
पूछ काँधों की होने लगी
केश जब भी सम्हाले गए
बाद में लोग सिक्के बने
पहले साँचों में ढाले गए
आज भी संत संसार से
स्वर्ण की ओर टाले गए