प्रसव पीड़ा में एक राष्ट्र / हैरिएट अनेना / श्रीविलास सिंह

गणतंत्र है प्रसवपीड़ा में
चीखता हुआ
राजनीतिक गलियारे में टहलता बेचैनी से
शाप देता औपनिवेशिक नर्स को
उसके यह कहने के लिए कि 'और ज़ोर लगाओ'।

घूम रहा है उसका सिर
दृष्टि हैं धूमिल
फटा पड़ रहा है दिमाग।

वह पीता है नकली नैतिकता का एक घूँट
और बड़बड़ाता हैं एक प्रार्थना आशा की
सद्यजात शिशु के लिए।

गणतंत्र है एक सिरविहीन मुर्गी
एक देह के साथ जो सिर्फ़
छटपटा सकती है प्रसवपीड़ा में।

वह शाप देता है भविष्य को
इतने शीघ्र आ जाने हेतु और
चिपका रहता है परदादा की घड़ी से
जो कि है बिगड़ी हुई
इस आशा के साथ कि यह सुधारेगी भविष्य
जो कि हो चुका है अपंग।

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