प्रस्ताव स्वीकार / प्रेम प्रगास / धरनीदास
चौपाई:-
पुलकित महत पुरोहित आये। समाचार कहि नृपहिं सुनाये॥
ध्यानदेव तव गणक हंकारा। प्राणमती जग करहु विचारा॥
लगन धरहु गुनि सकल सुरेहा। जेहिते युग युग युगल सनेहा॥
वहु पंडित जन करहिं विचारा। ज्योतिष ग्रंथ शास्त्र मतसारा॥
वहुत प्रकार धरी ठहराई। तेहि उपरांत लगन ठहराई॥
विश्राम:-
दिवस निरूपण कीन्हेऊ, न्योते देश विदेश।
करहु समान विधान जन, वोले मुदित नरेश॥176॥
चौपाई:-
नेगिन्ह कीन्हों सकल विचारा। चारिमास कर परे नियारा॥
वहुत अनूप कियो जनवासा। विविध विछांना भरि कै डासा॥
तम् कनात कतको गाडा। रंग विरंग जडावन जाड़ा॥
वस्तु विविधन जाय वखानी। मेवा जगत लिआओ आनी॥
वाजन जंह लगि कहिये नाऊं। वाजत घर घर सगरे आऊ॥
विश्राम:-
मांडो चित्र विचित्र करि, वेदी विविध बनाय।
कनक कलश भरि राखेऊ, माषिक दीप बराय॥177॥
चौपाई:-
कुंअर केश नख भद्र कराये। अर्गज लाय गुलाव नहाये॥
उत्तम वस्त्र दियो परिधाना। अतर लगाव कुंअर मनमाना॥
और परिजन संग नाना साजा। चंवर सुखावन रथ गुजराजा॥
शोभा आय कुंअर तन लोभा। एक विहीन अवर सव शोभा॥
सो पुनि करि है निकटहिं स्वामी। त्रिभुवन नायक अन्तर्यामी॥
विश्राम:-
चलि आये दिन आवते, जंह लगि क्षिति मंह राज।
अपनी अपनी सैन ले, नाना भांति विराज॥178॥