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प्रस्थान की तैयारी / ईश्वरबल्लभ / सुमन पोखरेल
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कुछ अच्छे लोगों की तरह
पक्षियाँ शाख-शाख पर जमा हो रही थीं।
आज, अब तक भी वह पूरबिया हवा नहीं चली,
एक सूखा पत्ता भी गिरा नहीं ।
वैसे तो दिल का दर्द तूफान जैसा होता है,
इसलिए इन बातों को भूल जाने में कोई हर्ज नहीं ।
मैं कगार पर खड़ा होकर देखता हूँ,
नीचे घाटी में नदी आई है या नहीं,
कुछ दिन पहले उसी जगह से वह नदी
बादल बनकर आसमान में चली गई थी
इसलिए पता नहीं पानी बह पाया या नहीं
समुद्र गरजा था
किनारों और मैदानों को उसने बुरी तरह से पीटा था
मछुआरे कहाँ गए
अब तक अपने पतवार लेकर आए नहीं
लग रहा है, इस बार तो तूफान ही आएगा
अब घर जाना होगा।
०००
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प्रस्थानको तरखर / ईश्वरवल्लभ