भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रस्थान / आन्ना अख़्मातवा
Kavita Kosh से
मैं तुम्हें सचेत करती हूँ
कि मैं जा रही हूँ आख़िरी बार --
न कुएँ में भरे जल की तरह,
न नरकुल, न सितारों की तरह,
न दूर बजती घण्टियों की तरह
मैं तंग नहीं करूँगी लोगों को
टपकूँगी नहीं उनके सपनों में
जैसे टपकती है कराह
या जैसे आर्तनाद
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : सुधीर सक्सेना