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प्रस्थान / मनोज कुमार झा
Kavita Kosh से
लुप्त होना दुश्य से
घर ने सिखाया मुझको
भयातुर छिपकलियों का पूँछ फेंकना
मैना के बच्चों का बसाना दूर बसेरा
एक चित्र की जगह दूसरा चित्र
भूल जाना दीवार का रंग पुराना
पुरानी रेडियो बेचकर बिस्कुट खरीदना
कुएँ का भर जाना कबाड़ से
ये सब घर ने दिखाए
घर भूल चुका है उस मुँहदुब्बर बच्चे को
मगर मैं लौटूँगा कभी किसी घिस रही शाम में
घर को याद दिलाने
कि भूलना सिखाया उसने ।