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प्रहसन / राम सेंगर
Kavita Kosh से
मैं तेरह साल का था, जब 1958 में माँ का निधन हुआ। निधन के काफ़ी बाद 2013 में थोड़ी-सी गणितीयता लिए हुए, यह कविता कुछ इस तरह से आई ।
धड़क रही है माँ,
सीने की हर धड़कन में ।
तब, बालक थे
अब, अड़सठ के ।
क़िस्से बहुत
प्यार के, हठ के ।
गोते, अनघ भावना,
खाती फिरी कहन में ।
अट्ठावन से तेरह
पचपन ।
अट्ठावन के पीछे
बचपन ।
कालचक्र ने बदल दिया
जीवन, प्रहसन में ।
मानुष बनते
देख न पाई ।
ऋण की चुकी न
आना-पाई ।
कटी अबोले
ख़ुद से
ख़ुद के निर्वासन में ।
धड़क रही है माँ
सीने की हर धड़कन में ।
रचनाकाल : 28 अक्तूबर 2013