प्राइम सर्वेंट / शेखर सिंह मंगलम
सियासत के नंगे तार में
नफ़रत का करेंट है
धुवाँ-धुवाँ हो गए नौजवां स्पर्श से
सहाफी कह रहे धुवाँ नहीं डिओड्रेंट है,
एक भटके हुए नौजवां ने
कट्टे पर जान का सट्टा खेला
तमाशबीन थी पुलिस
संगसार करने वालों ने भी कहाँ उसे पेला
खुदी की गुफ़ा में खिखिया रहा प्राइम सर्वेंट है,
अब कट्टों का लश्कर दहाड़ रहा
यक-जेहती का सीना फाड़ रहा मगर
राष्ट्रवादी नज़रिया कि
लश्कर आतंकवादी नहीं मज़हबी एस्पिरेन्ट है,
ऐ! दुनिया के लोगों
ये जो तुम अपनी ज़बान पे
“मुझसे क्या मतलब” का आलपिन लगाए हो
शुतुरमुर्गीय अभिमत है किन्तु
समझ रहे तुम बुद्ध कहेंगे गाय हो, ख़ैर
अभी तुम्हारा वाद वाइब्रेंट है,
सियासत के नंगे तार में
नफ़रत का करेंट है
धुआँ-धुआँ हो गए नौजवां स्पर्श से
सहाफी कह रहे धुवाँ नहीं डिओड्रेंट है।