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प्राकृतिक आपदा अर हम / सुन्दर नौटियाल

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तन्न त हमुन ढुंगु माटू सब्बी खणेन,
उंची धारू निसी गाडों मा कुड़ि बणैन ।
डाळि काटि-काटिक डोखरी बणी यख,
धारू-धारू मा सड़की काटि गाड़ि पौंछैन ।।
जगा-जगा पर रोकी पाणी डाम बणाई
पाडू़-पाडू़ मा सुरंग खणी टरबैन रिंगाई ।
जल-विद्युत उत्पादन मा नम्बर एक बण्या हम,
पर बिजली यों डामु की हमारा काम नी आई ।।
झील बणी लंबी चैड़ी दुनियां सी स्वाणी,
गौंगळा, खोळा भगड़ा डुब्यां, डुब्यीं टीरी पुराणी ।
कुड़ी डुब्यीं पुंगड़ी डुब्यीं रड़णी छ धार,
विकास का नौं पर या विनाश की काणी ।।
जंगलों का ठेका ह्वे बणु की चिरांत कराई,
ठेकेदारों न यख ढुंगु-माटू बि बिकायी ।
छालों की रेत सरेणी गंगलोड़ा बिकणन,
उत्तराखण्ड की धरती सात-पांचों न खाई ।।
खव्वा इना बण्यान कि कुछ नि सोचणा लोग
जख स्यूंण बिनी घुस्दी तख फाळा कोचणा लोग ।
गौं गळी खंडवार होणी शैरू भगणा सब,
नाळू खाळू का मुख हथ्ये तख बि बसणा लोग ।।
होणी बरखा पैणू रिवाड़ू बादळ फटणा छ,
कभी चमोली उत्तरकाशी कबि केदारनाथ बगणा छ ।
सिरोबगड़ की रगड़ बगड़ वरूणावत पहाड़ भी
बरखा मा रड़दा सुखा मा बाट लगणा छ ।।
कभी भैंचल झपोड़ी जांदू जिंदगी का सुपिना
कभी बथौं-पणगोळू कभी तबाही करदीना ।
कबि बणांग बणुमा लाखों जीव जलै देंद
बाघ रीख भुन्ना पौंछदा गौं न्यूता बिना ।।
पोषक थै धरती ज्वा विकराल बणीग्ये,
जन्मदाता जीवों की अब काल बणीग्ये ।
सर्वश्रेष्ठ बुद्धिजीवी धरतीपुत्र तू,
धरती पर जीवन कु अब जिवाळ बणीग्ये ।।
रूप रंग धरती कू बिगाड़ी ले हमुन,
ढकीं दब्यीं आफत उघाड़ी ले हमुन ।
बक्त रंदा अजिबी जु न चेत्यां हम सबी
समझा अपड़ी कुड़ी अपुहि उजाड़ी ले हमुन ।।