भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्राण! तुम लघु-लघु गात / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
प्राण! तुम लघु-लघु गात!
नील-नभ के निकुंज में लीन,
नित्य नीरव, निःसंग नवीन,
निखिल छबि की छबि! तुम छबि-हीन,
अप्सरी-सी अज्ञात!
अधर मर्मर-युत, पुलकित अंग,
चूमतीं चल-पद चपल-तरंग,
चटकतीं कलियाँ पा भ्रू-संग,
थिरकते तृण, तरु-पात।
हरित-द्युति चंचल-अंचल-छोर,
सजल-छबि, नील-कंचु, तन-गौर,
चूर्ण-कच, साँस सुगन्ध-झकोर,
परों में सायं-प्रात!
विश्व-हृत-शतदल निभृत-निवास,
अहर्निश साँस-साँस में लास,
अखिल जग-जीवन हास-विलास,
अदृश्य, अस्पृश्य, अजात!
रचनाकाल: १९३०