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प्राणप्रिया, छौं वास कहाँ नै ! / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
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प्राणप्रिया, छौं वास कहाँ नै!
तारोॅ सुधि के रास कहाँ नै!
सरिता के कलकल-छलछल में
भोरकोॅ हवा सरस चंचल में
सँझकी बेला में रहस्य छोॅ
तेॅ, सुगन्ध रं छोॅ शतदल में
सुधिये में नै; साधो तक में
तोरोॅ छौं आभास कहाँ नै।
प्राणप्रिया छौं वास कहाँ नै!
जेठोॅ में तोहीं तेॅ तरसौ
सौनोॅ में तोही तेॅ बरसौ
तोंही शिशिर बनी तड़पावौ
की वसन्त; बिन ओकरौ सरसौ।
तोंही गिरि-वन में झलकै छोॅ
तोरा ई उल्लास कहाँ नै!
जप-तप योग जहाँ तक देखौं
तोरोॅ रूप वहाँ तक देखौं
जत्तेॅ दूर नजर हमरोॅ जाय
तोरोॅ रूप तहाँ तक देखौं।
सब तोरे जादू सें बंधलोॅ
तोंही दूर आ पास कहाँ नै!