प्राणमती और मैना का प्रेम / प्रेम प्रगास / धरनीदास
चौपाई:-
राति दिवस असकै मन लावा। आन बात चित नेकु न भावा।।
पल पल छिन छिन मैना पासा। एक घरी नहिं करु विश्वासा।।
अति हित प्रीति कुँअरि जब कियऊ। तब मैनहिं पढवे चित दियऊ।।
जो जो वचन कुँअरि परकासा। सो उचरे मैनामुख भाषा।।
पांखे वचन सुनि कुँअरि हुलासी। शशिदर्शन कुमुदिनी विकासी।।
विश्राम:-
कुंअरि चित्त आनन्द भो, सुनि मैना के वैन।
अवर वनाय कहा कहों, अंध पाव जस नैन।।35।।
चौपाई:-
कुंअरि को मन जब मैना पाई। करि अनन्द मन मंगल गाई।।
मोहि यह बढो प्रेम व्यवहारा। तो विधि करिहहि काज हमारा।।
एक निशा सुख सोव कुमारी। वचन पुकारि जगायो सारी।।
कहहु वचन तुम पँखि पियारी। चिंहुकि उठी तब राजकुमारी।।
चिन्ता कवनि भई घी तोही। कारन कवन जगायो मोही।।
विश्राम:-
कहु मैना मम प्रान सम, जो मन उपजी तोहि।
परम पराछित तोहि कैह, छाडि दुरावहु मोहि।।36।।