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प्राणों का रस बरसाता चल / विमल राजस्थानी

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है अंतहीन सँकरी टेढ़ी यह कठिन प्यार की पगडंडी
पावों को लहूलुहान किये चलता चल, हँसता-गाता चल
रे गाता चल, मुस्काता चल

आँसू से पीड़ा के प्रदीप की जीवन-बाती जली सदा
ओ मेरे जीवन के दिवले! आँसू से जीवन पाता चल
रे गाता चल, मुस्काता चल

मीठी टीसें, वेदना मधुर
उपहार प्यार को मिलते हैं
ठोकर पर ठोकर लगती है
हम गिरते और सँभलते हैं

चोटों से पायी पीर तनिक रो देने से हल्की होती
बिंध-बिंध कर घायल हुए हृदय! छल-छल आँसू छलकाता चल
रे गाता चल, मुस्काता चल

कोई न यहाँ साथी-संगी
यह दुनिया निर्मम, बहुरंगी
दिन-रात लटकती रहती हैं
गर्दन पर तलवारें नंगी

कुछ खुले-खुले, कुछ छिपे-छिपे होते ही रहते वार यहाँ
मस्ती से जख्मी सीने पर ये जालिम चोटें खाता चल
रे गाता चल, मुस्काता चल

है प्यार राग दीपक हो तो
रे हँसते-हँसते गाना है
खुद ही तिल-तिलकर जल-जलकर
जग को प्रकाश दे जाना है

ईर्षा के झोंकों से निर्वापित हो पाये कब प्रेम - दीप
आँसू का स्नेह उँड़ेल, बुझे घर-घर के दीप जलाता चल
रे गाता चल, मुस्काता चल
आलोक अमंद बिछाता चल

पीड़ा को पावन गंगा से
जब करुणा की यमुना न मिले
अंतः सलिला तब सरस्वती का
दर्द भला कैसे पिंघले

काँटों को खुल कर चुभने दे, अरुणाभा लिये निखरने दे
बूँदों में स्नेह बिखरने दे, प्राणों का रस बरसाता चल
रे गाता चल, मुस्काता चल

-24.11.1974