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प्राणों की डोर / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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प्राणों की डोर
प्रेम -पगे दो छोर
हाथ तुम्हारे।
तुम जो चल दिए
व्याकुल उर,
रेत पर मीन ज्यों
जिए न मरे
तड़पे प्रतिपल
पूछे सवाल-
'पहले क्यों न मिले
छुपे थे कहाँ? '
भूल नहीं पाएँगे
सातों जनम
ये स्वर्गिक मिलन,
शब्द थे मूक
बिछुड़ने की हूक
चीर ही गई
रोता है अंतर्मन-
'अब न जाओ
मेरे जीवन धन'
वक़्त न रुका
छूट गया हाथ से
मन बाँधके
पकड़ा नहीं गया
वो आँचल का छोर।



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