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प्राण-नाथ मत रूठो करूणा-दृग खोलो / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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प्राण-नाथ मत रूठो करूणा-दृग खोलो।
इतने दिन मौन रहे अब तो कुछ बोलो।।

देख लो बुझी कब से नेह-दीप बाती।
प्रभु-विरहित व्यर्थ श्वांस आती है जाती।
मेरे उर प्रांगण में मंद-मंद डोलो-
प्राणनाथ मत रूठो 0..............................।।1।।

रिक्त पड़ी है कब से मेरी उर शैय्या।
सुखासीन हो जावो हे हृदय-रमैया।
इस कृपण के तंदुल की पोटली टटोलो-
प्राणनाथ मत रूठो 0..............................।।2।।

मैं अति समर्थ कठिन पाप की पहेली।
दुर्गुण-बोझिल सिर पर फेर दो हथेली।
सबके सब कुछ हो कुछ मेरे भी हो लो-
प्राणनाथ मत रूठो 0..............................।।3।।

सुधि-संबल दे कर लो अपना अनुगामी।
दिग भ्रमित बिहँग को दो चरण-नीड़ स्वामी।
‘पंकिल’ उर बीच परम प्रेम-रंग धोलो-
प्राणनाथ मत रूठो 0..............................।।4।।