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प्राण-शिल्पी / विमलेश शर्मा

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मेरी आँखें
एक बादल है इस क्षण

कोई समीरण का झोंका
मुझे धुन में बहा
तुम तक पहुँचाता है

कोयल वेणु-बंध स्वर
अस्थिर हो
बेधता है प्रभात को
और
मैं टूटकर बिखरता हूँ
ज्यों जाग्रत प्राण!