प्राण कलम नित मानव जीवन ग्रंथ रचाती / रुचि चतुर्वेदी
प्राण कलम नित मानव जीवन ग्रंथ रचाती,
लेकिन मृत्यु सबका अंतिम पृष्ठ लिखेगी।
जग का है यह मंच सभी को अभिनय करना,
या तो नायक या फिर है खलनायक बनना।
सुख दुख के संवाद सभी को लिखे मिलेंगे,
इसी मंच पर सत्य झूठ के हैं रंग भरना।
आशा मन को नित्य नया संगीत सुनाती,
भीतर कभी निराशा भी कुछ कष्ट लिखेगी॥
प्राण कलम नित मानव जीवन ग्रंथ बनाती,
लेकिन मृत्यु सबका अंतिम पृष्ठ लिखेगी।
सरिता जैसा है जीवन चलता ही जाता।
भवसागर में किन्तु अंत में जाय समाता।
पथरीली राहों से गुज़रे कभी-कभी तो,
समतल पर कलकल का मधुरिम गीत सुनाता।
अच्छाई निर्मल मन का दर्पण दिखलाती,
किन्तु बुराई अंतरतम दिग दृष्ट लिखेगी॥
प्राण कलम नित मानव जीवन ग्रंथ रचाती,
लेकिन मृत्यु सबका अंतिम पृष्ठ लिखेगी।
जीवन है इक गीत जिसे जीवन भर गाते,
कभी प्रेम तो, कभी व्यंग्य के बाण चलाते।
छंद, रुबाई, दोहों जैसे दिवस बीतते,
कभी ओज से राष्ट्र भक्ति का भाव जगाते।
भाषा से बोली से हमको सार बताती,
ये असत्य तो सत्य कभी हर वृष्ट लिखेगी॥
प्राण कलम नित मानव जीवन ग्रंथ रचाती,
लेकिन मृत्यु सबका अंतिम पृष्ठ लिखेगी।