प्राण तुझको दिया तो दिया इस तरह / अनुराधा पाण्डेय
प्राण तुझको दिया तो दिया इस तरह,
भान होता रहा कुछ दिया ही नहीं।
छुद्र मेरा समर्पण न उस योग्य था,
है चरम देवता तू, सतत ये लगा।
विश्व ब्रह्माण्ड में और कुछ भी नहीं,
हर जगह ही लगा मात्र तू ही पगा।
प्रीत तुझसे हुई पर लगा आयु भर-
भूल जाऊँ पृथल, प्रण लिया ही नहीं।
प्राण तुझको दिया तो दिया इस तरह,
भान होता रहा कुछ दिया ही नहीं।
लोग कहते रहे यह पृथक बात है,
मात्र तेरी करूँ रात दिन वंदना।
पर हमेशा लगा कुछ कमी रह गई,
योग्य मेरी नहीं थी अथक साधना।
कोटि मैंने किये साध तेरे लिए
किन्तु ऐसा लगा कुछ किया ही नहीं।
प्राण तुझको दिया तो दिया इस तरह,
भान होता रहा कुछ दिया ही नहीं।
इक अमर रश्मि तेरे अधर के लिए,
कोटि करके जतन भी न मैं ला सका।
हो चिरंतन निलय एक उत्सव भरा,
ढूँढ कर भी न तेरे लिए पा सका।
जन्म मेरा निर्रथक प्रिये! हो गया
देह ढोता रहा पर ज़िया ही नहीं।
प्राण तुझको दिया तो दिया इस तरह,
भान होता रहा कुछ दिया ही नहीं।