भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रात भयो तात, बलि मातु बिधु-बदनपर / तुलसीदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग बिभास

प्रात भयो तात, बलि मातु बिधु-बदनपर
मदन वारौं कोटि, उठो प्रान-प्यारे !
सूत-मागध-बन्दि बदत बिरुदावली,
द्वार सिसु अनुज प्रियतम तिहारे ||
कोक गतसोक अवलोकि ससि छीनछबि,
अरुनमय गगन राजत रुचि तारे |
मनहुँ रबि बाल मृगराज तमनिकर-करि
दलित, अति ललित मनिगन बिथारे ||
सुनहु तमचुर मुखर,कीर कलहंस पिक
केकि रव कलित, बोलत बिहँग बारे |
मनहुँ मुनिबृन्द रघुबंसमनि! रावरे
गुनत गुन आश्रमनि सपरिवारे ||
सरनि बिकसित कञ्जपुञ्ज मकरन्दवर,
मञ्जुतर मधुर मधुकर गुँजारे |
मनहुँ प्रभुजनम सुनि चैन अमरावती,
इन्दिरानन्द-मन्दिर सँवारे ||
प्रेम-सम्मिलित बर बचन-रचना अकनि
राम राजीव-लोचन उघारे |
दास तुलसी मुदित, जननि करै आरती,
सहज सुन्दर अजिर पाँव धारे ||