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प्रानसहित या देह कौ बिसरि / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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प्रानसहित या देह कौ बिसरि जाय सब नेम।
ताही कौं जग कहत हैं पूरन प्रेमी प्रेम॥
अकथ कथा है प्रेम की, कही जात नहिं बैन।
रूप-सिंधु भरि लेत हैं, पल-प्यालनमें नैन॥
प्रेमपास में डंसि मरै, सोई जिऐ सदाहिं।
प्रेम-मरम जाने बिना, मरि कोउ जीवत नाहिं॥