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प्राप्ति और प्रतीति / गिरीष बिल्लोरे 'मुकुल'
Kavita Kosh से
परिंदों,
तुम आज़ाद हो,
उड़ो, ऊँचे और ऊँचे,
जहाँ, सफलता का दृश्य,
बाट जोहता है।
जहाँ से कोई योगी,
पहले पहल सोचता है ?
इस आव्हान का असर,
एक पाखी ने फड़फड़ाए पर,
टकराकर, जाने किस से -
गिर गया -विस्तृत बयाबान में,
और
तब से अब तक हम,
आप और मैं. . .
ताड़ के पत्तों से,
किताबों के जंगल तक-
अन्वेषणरत-
खोजते-
कराहों का कारण