प्राप्य से परे अप्राप्य की ओर
- चला जा रहा है मनुष्य
समाधि में नहीं--
- अजान के ज्ञान में समाने
संजीवन स्तरों को पाने
भले ही मनुष्य हो मनुष्य का घातक
राष्ट्र ही राष्ट्र के अनिष्ट का संस्थापक
- और भूमि हो स्वयं से भयभीत
चाहे सर्वत्र प्रसारित हो
अनरीत
प्राप्य से परे अप्राप्य की ओर
समाधि में नहीं--
संजीवन स्तरों को पाने
भले ही मनुष्य हो मनुष्य का घातक
राष्ट्र ही राष्ट्र के अनिष्ट का संस्थापक
चाहे सर्वत्र प्रसारित हो
अनरीत