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प्रारम्भ में लौटने की इच्छा से भरी हूँ ! / संध्या गुप्ता
Kavita Kosh से
मैं उसके रक्त को छूना चाहती हूँ
जिसने इतने सुन्दर चित्र बनाए
उस रंगरेज़ के रंगों में घुलना चाहती हूँ
जो कहता है-
कपड़ा चला जाएगा बाबूजी!
पर रंग हमेशा आपके साथ रहेगा
उस काग़ज़ के इतिहास में लौटने की इच्छा से
भरी हूँ
जिस पर
इतनी सुन्दर इबारत और कविताएँ हैं
और जिस पर हत्यारों ने इक़रारनामा लिखवाया
तवा, स्टोव
बीस वर्ष पहले के कोयले के टुकड़े
एक च्यवनप्राश की पुरानी शीशी
पुराने पड़ गए पीले ख़त
एक छोटी-सी खिड़की वाला मंझोले आकार का कमरा
एक टूटे हुए घड़े के मुहाने को देख कर
....शुरू की गई गृहस्थी के पहले एहसास
को छूना चाहती हूँ
अभी स्वप्न से जाग कर उठी हूँ
अभी मृत्यु और जीवन की कामना से कम्पित है
यह शरीर !