भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रार्थनाको निशि / लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क.
पलक निमीलित आज निशि,
प्रार्थना छन्सलिलदृशी !
 
ख.
दुइटा उडुकण ढुल्कन्छन्
बादलपरेला छिचली !

ग.
निश्चल, निस्पन्द !
श्वासबन्द !
 
घ.
क्षणकन पार्छिन्अनन्त–दर्पण !
अर्पण !
 

निभिरहेछ संसार उनको ! उडिरहेछ नीरव,
दुइटा पखेटा क्रन्दनको !
 
च.
बज्दछ अश्रुतबीच मसिनो
मनको तार !
अन्तर–श्वसनकनको परी प्रहार !
“ए ! सुन्दर !
एक किरण !
अमृत मुहार ! ..........”
 
छ.
जीवन घडीजस्तो छ !
व्यष्टि, समष्टि !
घडीका सूईका दुई हात
जोर्छिन्शिरमा, रात !
आँखा मुदी,
माग्छिन्प्रभात !