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प्रार्थना-घर / विजय गुप्त

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टूट गया जीवन-समास
इष्ट हुए गौण
केवल वास्तु-शिल्प मुखर

प्रार्थनाओं की शाम
रक्त के तालाब में
डूब गई

वर्दियों के धुँधलके में
हमारा प्रार्थना-घर ।