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प्रार्थना के शब्द / रश्मि भारद्वाज
Kavita Kosh से
कहीं एक आशा का सूरज डूबा
तो एक तारा आख़िरी उम्मीद-सा आता होगा
सदियों से वृताकार नाचती इस पृथ्वी पर
अपने-अपने हिस्से के दिन-रात लिए
जीते जाने को अभिशप्त लोग
दुहरा रहें है कुछ शब्द
शब्द जिनकी कोई लिपि नहीं हैं
जो पृथ्वी की हर भाषा में समान है
जीत, हार, अन्धेरे, उजाले
सबको समेटे वह जीते रहें हैं पृथ्वी की उम्र
ठीक उसी क्षण कहींं
एक इतिहास अपना प्रारब्ध लिख रहा होता है
तो कहीं घोषित होती है समाप्ति एक अध्याय की
महानायकों की जीत और हार सहेजती ;
लेकिन हर बार छूटते रहे हैं
कहीं किसी कोने में हौले से बुदबुदाए जाते अक्षर
जिनके हिस्से आया है बस
बिलखती हुई मनुष्यता को सम्भालना