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प्रार्थना / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

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एक

नहीं, नहीं, प्रभु तुमसे
शक्ति नहीं माँगूँगा ।

अर्जित करूँगा उसे मरकर बिखरकर
आज नहीं, कल सही आऊँगा उबरकर
कुचल भी गया तो लज्जा किस बात की |

रोकूँगा पहाड़ गिरता
शरण नहीं भागूँगा,
नहीं नहीं प्रभु तुमसे
शक्ति नहीं माँगूँगा।

कब माँगी गंध तुमसे गंधहीन फूल ने
कब माँगी कोमलता तीखे खिंचे शूल ने
तुमने जो दिया, दिया, अब जो है, मेरा है।

सोओ तुम, व्यथा रैन
अब मैं ही जागूँगा,
नहीं नहीं प्रभु तुमसे
शक्ति नहीं माँगूँगा।

दो

दुर्गम पथ तेरे हों
थके चरण मेरे हों

यात्रा में साथी हों हर पल असफलताएँ
मुझ पर गिरती जाएँ मेरी ही सीमाएँ

सुखद दृश्य तेरे हों
भरे नयन मेरे हों,
दुर्गम पथ तेरे हों
थके चरण मेरे हों ।

अपने साहस को भी मैं कंधों पर लादे
चलता जाऊँ जब तक तू यह तन पिघला दे

अमर सृजन तेरे हों
मृत्यु वरण मेरे हों,
दुर्गम पथ तेरे हों
थके चरण मेरे हों ।

तीन

अपनी दुर्बलता का
मुझको अभिमान रहे,
अपनी सीमाओं का
नित मुझको ध्यान रहे।

हर क्षण यह जान सकूँ क्या मुझको खोना है
कितना सुख पाना है, कितना दुख रोना है

अपने सुख-दुख की प्रभु
इतनी पहचान रहे ।
अपनी दुर्बलता का
मुझको अभिमान रहे ।

कुछ इतना बड़ा न हो, जो मुझसे खड़ा न हो
कंधों पर हो, जो हो, नीचे कुछ पड़ा न हो

अपने सपनों को प्रभु
बस इतना ध्यान रहे।
अपनी दुर्बलता का
मुझको अभिमान रहे |

अपनी सीमाओं का
नित मुझको ध्यान रहे।

चार

यही प्रार्थना है प्रभु तुमसे
जब हारा हूँ तब न आइए।

वज्र गिराओ जब-जब तुम
मैं खड़ा रहूँ यदि सीना ताने,
नर्क अग्नि में मुझे डाल दो
फिर भी जिऊँ स्वर्ग-सुख माने,

मेरे शौर्य और साहस को
करुणामय हों तो सराहिए,
चरणों पर गिरने से मिलता है
जो सुख, वह नहीं चाहिए

दुख की बहुत बड़ी आँखें हैं,
उनमें क्या जो नहीं समाया,
यह ब्रह्मांड बहुत छोटा है,
जिस पर तुम्हें गर्व हो आया,

एक अश्रु की आयु मुझे दे
कल्प चक्र यह लिए जाइए ।