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प्रियंका बरुआ / मलय रायचौधुरी / सुलोचना वर्मा

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प्रियंका बरुआ तुम्हारे
होठों का महीन उजाला
मुझे दो न ज़रा-सा

विद्युत् नहीं है
कई साल हुए
मेरी उँगलियों में हाथों में

तुम्हारी उस हँसी से
ज़रा-सा बुझा दोगी क्या
मेरे जलते होठों को

जब भी कहोगी तुम
कविता की कॉपी से
निकालकर दे दूँगा तुम्हें

सुना है आग भी है
तुम्हारी देह के किसी खाँचे में
माँगते हुए शर्म महसूस करता हूँ

जुगनू का हरा
प्रकाश हो, तो भी चलेगा
दो न ज़रा-सा

होंठ जो सूख गया है
प्रियंका बरुआ देखो
कविता लिखना भी हुआ बन्द

तुम्हारे कभी के दिए हुए
अन्धकार में अब भी
डूब जाती है हाथों की उँगलियाँ

तुम्हारी उस हँसी से
ज़रा-सा बुझा दोगी क्या
मेरे जलते होठों को

जब भी कहोगी तुम
कविता की कॉपी से
निकालकर दे दूँगा तुम्हें

मूल बंगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा
लीजिए, अब मूल बंगला में यही कविता पढ़िए
           প্রিয়াংকা বড়ুয়া

প্রিয়াংকা বড়ুয়া তোর
ঠোঁটের মিহিন আলো
আমাকে দে না একটু

ইলেকট্রিসিটি নেই
বছর কয়েক হল
আমার আঙুলে হাতে

আগুনও আছে নাকি
তোর দেহে কোনো খাঁজে
চাইতে বিব্রত লাগে

জোনাকির সবুজাভ
আলো থাকলেও চলে
দে না রে একটুখানি

ঠোঁট যে শুকিয়ে গেছে
প্রিয়াংকা বড়ুয়া দ্যাখ
কবিতা লেখাও বন্ধ

তোর ওই হাসি থেকে
একটু কি নিভা দিবি
আমার শুকনো ঠোঁটে

যখনি বলবি তুই
কবিতার খাতা থেকে
তুলে দিয়ে দেব তোকে