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प्रियतम! बनकर आ‌ओ चाहे झपक झपटते झंझावात / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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प्रियतम! बनकर आ‌ओ चाहे झपक झपटते झंझावात।
घोर घोष करते चाहे बन आ‌ओ प्रलयंकर पबि-पात॥
मन्द-सुगन्ध मलय-मारुत बन आ‌ओ चाहे शुचि सुख-खान।
सौय सुधा बरसाते चाहे आ‌ओ बन सुधांशु भगवान॥
देख भयंकर-सुन्दर रूप तुम्हारे विविध विश्व-‌आधार।
लूँ तुरंत पहचान, न भूलूँ, किसी वेषमें तुम्हें निहार॥
नित्य नवीन रूप धर नटवर! लीला तुम करते स्वच्छन्द।
पाता रहूँ प्रणत-पद-रज मैं नत-सिर पल-पल लीलानन्द॥