भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रियतमे! मैं नित रिनी तिहारौ / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रियतमे! मैं नित रिनी तिहारौ।
तेरे प्रेमरसाबुधि के सीकर कौ मोय सहारौ॥
प्रेम-सुधा पावन अति तेरी, मो नित जीवन देत।
तन-मन-‌इंद्रियगन की ज्वाला सब छिन-छिन हरि लेत॥
हौं तेरे अति बिमल प्रेम के हूँ सर्बथा अजोग।
तू उदार-चूड़ामनि निज दिसि देखि देय संजोग॥
तू अनन्य, हौं घर-घर डोलौं, मेरौ प्रेम अपावन।
तौहू तू मेरी आराध्या, करत रहत मोहि पावन॥
तेरौ प्रेम सदा ही निर्मल, नित्य परम सुख-मूल।
तू नित ही अति छमा-परायन, नित्य करौं मैं भूल॥
मत मेरी दिसि कबौं देखियो, नित अनुकंपा रखियौ।
अपने पावन पद-कमलनि महँ मोय निरंतर लखियौ॥