भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रियतम, आज बहुत दिन बाद / अज्ञेय
Kavita Kosh से
प्रियतम, आज बहुत दिन बाद!
आँखों में आँसू बन चमकी तेरी कसक भरी-सी याद!
आज सुना है युगों-युगों पर तेरे स्वर का मीठा मर्मर-
जिसे डुबाये था अब तक जग का वह निष्फल रौरव-नाद!
प्रियतम, आज बहुत दिन बाद!
छिन्न हुआ अँधियारा अम्बर, चला लोचनों से बह झर-झर
विपुल राशि में संचित था जो मेरे प्राणों में अवसाद!
प्रियतम, आज बहुत दिन बाद!
रो लेने दो मुझ को जी भर-यही आज सुख सब से बढ़ कर!
मुझे न रोको आज कि मुझ पर छाया है उत्कट उन्माद!
प्रियतम, आज बहुत दिन बाद!
1936