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प्रियतम / रामनरेश त्रिपाठी

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सोकर तूने रात गँवाई।
आकर रात लौट गए प्रियतम
तू थी नींद भरी अलसाई।
रहकर निपट निकट जीवन भर
प्रियतम को पहचान न पाई।
यौवन के दिन व्यर्थ बिताए
प्रियतम की न कभी सुध आई।
कभी न प्रियतम से हँस बोली
कभी न मन से सेज बिछाई।
आज साज सज सजनी कर तू
प्रियतम की मन भर पहुँनाई।
अब की बिछुड़े फिर न मिलेंगे
कर ले अपनी आज भलाई।
भर भर लोचन धो घर बाहर
बाट बुहार अगोर अवाई।