भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रिया-9 / ध्रुव शुक्ल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भूमि प्रजा और धन जुए में हार गए
वे शब्द को भी हार गए

अनर्थ भरी सभा में
घसीट कर ले आया उसे निरलंकार
निर्वसन करने को आतुर
खींचता श्याम-वर्ण केश
धोए गए जो मन्त्रपूत जल से

ज्ञानी हतप्रभ हैं !

पूछती है प्रिया--
क्या तुम्हें मुझे भी दाँव पर लगाने का अधिकार था?