प्रिया तरुणी हो, तटिनी कूल,
अरुण मदिरा, बहार के फूल;
मधुर साक़ी हो, विधि अनुकूल,
दर्द दिल जावे अपना भूल!
खुली हो मदिरालय की राह,
छलकता हो नभ घट से माह;
मदिर नयनी की हो बस चाह,
उमर जग से हो लापरवाह!
प्रिया तरुणी हो, तटिनी कूल,
अरुण मदिरा, बहार के फूल;
मधुर साक़ी हो, विधि अनुकूल,
दर्द दिल जावे अपना भूल!
खुली हो मदिरालय की राह,
छलकता हो नभ घट से माह;
मदिर नयनी की हो बस चाह,
उमर जग से हो लापरवाह!