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प्रिये, गाओ बहार के गान / सुमित्रानंदन पंत

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प्रिये, गाओ बहार के गान
मिला स्वर में सलज्ज मुस्कान,
करूँ मैं मदिराधर मधु पान!
सराहूँगा मैं उसके भाग
सुरा से जिसे मर्म अनुराग,
हृदय में जिसके मादक आग!
उमर को नहीं और कुछ काम
संग हो प्रेयसि मधुर ललाम,
रंग उर में, कर में हो जाम!