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प्रिये तुम्हारे स्नेहिल स्वर में इतना अपनापन झलका है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'

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प्रिये तुम्हारे स्नेहिल स्वर में इतना अपनापन झलका है ।
पोर-पोर रोमांचित, लगता अधरों से अमृत छलका है ।।

रस धार बही या फूल झरे, छाया चंहुदिश उजियारा है ।
राधा की पैजनियां बोली, या मीरा का इकतारा है ।
या चढ़ी हिन्डोले रति डोली, खनकाती कंगना प्यारा है ।
या फिर उठी हिलोर उदधि में या जल तरंग झनकारा है ।

यह प्रीति पगा स्पर्श तुम्हारा, कितना हल्का हल्का है ।
पोर-पोर रोमांचित --------

शंकाओं का दुर्ग ढहा है, निर्मल धवल प्रकाश जिया है ।
सौ बार प्रिये अपने भीतर मौजूद तुम्हें आभास जिया है ।
कोना-कोना महका है मन बगिया ने मधुमास जिया है ।
आभार भाग्य का प्रभु का हम दोनो ने विश्वास जिया है ।

उतर चांदनी गई हृदय में सारा मिट चला धुंधलका है ।
पोर-पोर रोमांचित ------

कजरारी नयन पुतलियों ने, इतरा कर किया दुलार प्रिये ।
बज उठी घंटियां मंदिर में, खुल रहे हृदय के द्वार प्रिये ।
दारिद्य मिटा मिल गया आज मधु का पावन भण्डार प्रिये ।
आजीवन ऋणी बनायेगा, इन बाहों का यह हार प्रिये ।

तुमने अपना कह दिया मुझे,गुलशन में मचा तहलका है ।
पोर-पोर रोमांचित लगता,अधरों से अमृत छलका है ।।