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प्रिय, देख मिलन मेरा-तेरा क्यों तारे जलते हैं / हरिवंशराय बच्चन

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प्रिय, देख मिलन मेरा-तेरा क्यों तारे जलते हैं?

पत्ते सहसा आपस में यों
क्यों बात लगे करने?
मलयानिल बहकर अंबर के
क्यों कान लगा भरने?
डाली-डाली उँगली बनकर
क्यों बनकर उठती है?
प्रिय, देख मिलन मेरा-तेरा क्यों तारे जलते हैं?

हो साथ गए दो घड़ियों को
दो मिट्टी के ढोंके,
हैं काल-नियति के ही क्या कम
जो जग भी दे झोंके,
हम ख़ुद की कुछ दुख की सुधियों से
सुख पर संयम रखते,
है एक नयन हँसता, दूजे से आँसू ढलते हैं।
प्रिय, देख मिलन मेरा-तेरा क्यों तारे जलते हैं?