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प्रिय की याद / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
1
प्रिय की याद
रह-रहके आई
फूटी रुलाई
हिचकी नहीं थमी
छाई आँखों में नमी।
2
सोचना पड़ा-
तुम मिले न होते
तो क्या-क्या होता?
प्यासे ही मर जाते
हम नदी किनारे।
3
खड़ी है द्वारे
करे अभिनन्दन
भोर किरन
भाव- पगी अर्पित
नेह -कुसुमांजलि
4
अपराजिता
क्या उपहार दूँ मैं
पढ़ सृजन
उड़कर आ जाऊँ
तुझे गले लगाऊँ!
5
घेरती रही
अकेले को तो भीड़
आए भीड़ में
और हुए अकेले
कोई तो साथ ले ले।
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